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यह वेब्साइट श्री रमण महर्षि को समर्पित है जो 20 वीं सदी में भारत के क्षेत्र तिरुवण्णामलै (दक्षिण भारत) स्थित अरुणाचल के पावन पर्वत पर रहते थे । उनके उपदेशों का सारांश उनकी गद्य पुस्तक – “मैं कौन हूँ” से प्राप्त किया जा सकता है । जब कोई अपने वास्तविक स्वरूप का अनुभव करता है तो उसे शाश्वत आनन्द की अनुभूति होती है तथा वह अमर हो जाता है । उनके उपदेश के अभ्यास में सहयोग के लिए हम आवश्यक स्रोत (सामग्री) प्रस्तुत करते हैं । आपको, अन्य स्थलों के सम्पर्क-सूत्र भी प्राप्त होंगे।