रमणाश्रमम – दर्शन:

यद्यपि महर्षि के भौतिक शरीर की उपस्थिति का अनुग्रह आश्रम में नहीं मिल पाता किन्तु उनकी आध्यात्मिक उपस्थिति सदैव जीवन्त है | आश्रम में दर्शन के लिए आने वाले भक्त एवं मुमुक्षु अपने आपको मौन उपदेश से एकाकार कर अत्याधिक लाभ उठाते हैं| यात्रियों की जानकारी के लिए निम्नलिखित जानकारियाँ उपयोगी हैं|

तिरुवण्णामलै कस्बा चिन्नै (मद्रास) से १२० मील – दूर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है | यहाँ से १३० मील की परीधि के विभिन्न स्थानों से बसों से पहुँचने की सुविधा है| यह दक्षिण रेलवे के विल्लूपुरम – काटपाडी रेलवे मार्ग पर अवस्थित है| दक्षिण भारत के विभिन्न स्थानों से यात्री टैक्सी द्वारा भी आश्रम पहुँच सकते है| चेन्गम रोड पर स्थित प्रमुख बस स्टैन्ड तथा रेलवे स्टेशन से आश्रम दो मील दूरी पर है| सड़क के उत्तरी छोर पर यह प्रमुख स्थान है जिसे यात्री को मालूम करने में कोई कठिनाई नहीं होती|

आश्रम में प्रवेश:-

आश्रम के नाम की घोषणा करने वाले प्रमुख द्वार को पार करते ही यात्री एक खुले स्थान, जो पेड़ो से आच्छादित है तथा जिसमें एक ४०० वर्षीय इलूपै (महुआ) का वृक्ष भी है, में पहुँचता तथा फिर आगे बढ़ता है | उसके बाद बाँयी और द्रविण परम्परा के दो विशाल गुंबज मंदिर पर खड़े दीखते हैं जिनमें एक मातृभूतेश्वर मंदिर से जोड़ता है जो माँ की समाधि पर खडा किया गया है, दूसरा गुंबज नये कक्ष का है|

नया कक्ष:-

नये कक्ष में सर्वप्रथम योगासन में स्थित चमकती हुई महर्षि की काली मूर्ति यात्रियों को आकर्षित करती है| इस कक्ष का निर्माण नीचे वर्णित पुराने कक्ष में यात्रियों के लिए स्थान कम पड़ने के कारण किया गया ताकि यात्री यहाँ बैठ सकें किन्तु महर्षि ने नये कक्ष एवं पत्थर दीवान का उपयोग मात्र कुछ माह किया क्योंकि उसके बाद उन्होंने महासमाधि ले ली |

मातृ भूतेश्वर मंदिर :

नये कक्ष की पश्चिमी दीवार मातृ भूतेश्वर मंदिर में खुलती है| इस मंदिर का निर्माण प्रसिद्ध मंदिर वास्तुशास्त्री वैद्यनाथ शतपति की देखरेख में हुआ था | गर्भगृह में महर्षि द्वारा स्पर्श किया गया शिवलिंग तथा श्रीचक्रमेरु स्थापित है । हर शुक्रवार, पूर्णिमा एवं बारह सौर्य महीनो के प्रथम दिन यहाँ श्रीचक्र की विशेष पूजा होती है| गर्भगृह के बाहरी दीवारों पर दक्षिणामूर्ति, लिंगोदभवमूर्ति, विष्णु एवं लक्ष्मी की मूर्तियाँ बनी हुई हैं| दक्षिण पश्चिम एवं उत्तर पाश्चिम में क्रमश दो मंदिर भगवान गणेश एवं सुब्ब्रमण्या को समर्पित किये गये हैं | इसी प्रकार एक चन्द्र्शेखर का मंदिर उत्तरी दिशा में है | उत्तर – पूर्वी दिशा में नवग्रहों का स्थान है | छ्त के आधार स्तम्भों पर अनेक देवी-देवता की मूर्तियाँ बनी हुई है | गर्भगृह के द्वारा पर गर्भगृह की ओर मुख किये विशाल नंदी की स्थापना है | पूरे मंदिर का निर्माण श्रेष्ठ ग्रेनाइट से हुआ है|

महर्षि की समाधि:-

माँ के मंदिर के उत्तरी दीवार के दरवाजे को पार करने पर व्यक्ति महर्षि की समाधि पर बने मंदिर में पहुँचता है | इसमें एक मन्टप है तथा उसे घेरते हुए एक गुंबद है । नक्काशी किये गये चार बड़े ग्रेनाइट स्तम्भ पर यह गुंबद रवड़ा है | मन्टप के बीच में कमलाकार सफेद् मारबल स्थापित है जिस पर पवित्र शिवलिंग की स्थापना हुई है| इस मंदिर में फर्श पर मारबल का बना एक विशाल ध्यान कक्ष है | समाधि कक्ष के उत्तरी दरवाजे को पारकर यात्री पुराने कक्ष में पहुँचता है | यह स्थान तथा निर्वाण कक्ष जो महर्षि की उपस्थिति का विशेष रूप से आभास कराते हैं, का संक्षिप्त वर्णन करना आवश्यक है| इस कक्ष में हजारों भक्तों ने उनके दर्शन (एक पवित्र व्यक्ति या आकृति के रूप में ) किये | अपने अन्तिम समय के एक वर्ष पूर्व तक उन्होंने अधिकांश समय कक्ष में स्थापित दीवान पर बिताया | यह वह स्थान है जहाँ भक्तों ने वर्षों तक उनकी उपस्थिति में उत्सर्जित जीवन्त शान्ति का अनुभव किया | भक्तों एवं निवासियों के लिए पुराना कक्ष ध्यान के लिए सबसे अनुकूल है |

इस कक्ष के उत्तर दिशा में खुली जगह है जहाँ कुछ छायादार वृक्ष लगे हैं | इसी से जुड़ा एक फूलों का उदयान है| उत्तरी दिशा से अरुणाचल पर्वत के स्कन्दाश्रम जाने वाले रास्ते के पूर्व एक विशाल पाकशाला एवं भोजन कक्ष है|

भोजन कक्ष:-

भोजन कक्ष में हुए नये विस्तार से उसमें लगभह २०० व्यक्ति बैठ सकते हैं| भोजन पकाने की वहाँ विस्तृत व्यवस्था है| जयन्ती (महर्षि जन्मदिन) जैसे विशेष अवसरों पर २ से ३ हजार व्याक्तयों के लिए भोजन बनाने की व्यवस्था है| महर्षि जहाँ भोजन के लिए बैठते थे, भोजन-कक्ष में उस स्थान पर मारबल के चवूतरे पर एक बडा फोटो लगा है | पुराने भोजन कक्ष मे उत्तरी दरवाजे से गुजरते हुए हम नये भोजन कक्ष में पहुँचते हैं जिसका निर्माण हाल ही में दशर्नार्थियों की बडती भीड को ध्यान में रखकर किया गया है | पाकशाला के उत्तर में इससे अलग सामान रखने हेतु एक स्टोर-रूम है | इसके दक्षिण में एक गलियारा पुरुषों के लिए बने एक आवास गृह से अलग करता है | यह गलियारा वेद पाठ्शाला की ओर जाता है जहाँ किशोर बच्चों के वेदाध्ययन एवं आवास की व्यवस्था है | उसके आगे गोशाला है जहाँ गायों के रख रखरखाव की व्यवस्था है | आगे पूर्व में शौचालय बने हुए हैं |

निर्वाण – कक्ष:-

निर्वाण कक्ष, नये कक्ष के पूरब एवं आफिस के उत्तर में है | यहाँ पर महर्षि ने अपने अन्तिम दिन व्यतीत किये थे, इसलिए यह स्थान विशेष महत्व का है | इस पावन स्थान के दक्षिण में माँ के मंदिर की ओर मुख किये श्री निरन्जनानंद स्वामी की समाधि पर बना मंदिर है, जो भगवान के छोटे भाई तथा आश्रम के सर्वाधिकारी या व्यव्स्थापक थे | मन्टप तथा निर्वाण कक्ष नारियल पेड़ो के झुंड से घिरा है |

अतिथि – कक्ष:-
महर्षि के महानिर्वाण के बाद आश्रम के चारो ओर अनेक अतिथि – गृहों का निर्माण हुआ है | पालीतीर्थ सरोवर के पश्चिम में अतिरिक्त अतिथि गृहों का निर्माण हुआ ।  यह जंगल से घिरा पाल्कोत्तु का हिस्सा था जहाँ आरंभिक दिनों में महर्षि टहलते थे | सभी अतिथि घरों के कमरे साफ हैं तथा उनमें सामान्य विस्तर, पंखा, बाथरूम, खिड़की एवं दरवाजे लगे हुए हैं | आश्रम कि शान्ति एवं पवित्रता बनाये रखने की टृष्टि से श्री रमणाश्रमम् प्रशासन ने आश्रम परीसर में अतिथि गृहों के निर्माण पर विराम लगा दिया है |
आश्रम के सामने सड़क को पार करने पर मोर्वी अतिथि गृह है जहाँ अनेक अतिथि कक्ष बने हुए हैं तथा यही पर श्री रमण पुस्तकालय था |

श्री रमण पुस्तकालय:-
इस पुस्तकालय में आध्यात्मिक विषयों  पर अनेक भाषाओं में पुस्तकों का संग्रह है | यह प्रात: ८ से ११ बजे तथा दोपहर में २ से ५ बजे तक खुला रहता है | यात्रियों के लिए यहाँ पढ़ने की व्यवस्था है तथा जो सदस्य हैं वे पुस्तके पढ़ने के लिए ले जा सकते हैं |

आश्रम दिनचर्या एवं त्यौहार:-
श्री रमणाश्रमम् में यात्री अपनी सुविधानुसार साधना करने के लिए स्वतंत्र है | कोई भी निर्धारित साधना करने के लिए वाध्य नहीं है | प्रतिदिन प्रात: नाश्ते के पूर्व महर्षि की समाधि पर महर्षि की प्रार्थना में श्लोक पढ़े जाते एवं शिवलिंग की पूजा होती है | प्रात:  8 बजे महर्षि के मंदिर में वेदों का पाठ होता है|

यह पाठ महर्षि के समय से ही होता चला आ रहा है | उसके बाद पारम्परिक पूजा-अर्चना, पुष्प, फल अर्पण, कपूर एवं दीप प्रज्वलन सहित वेद मंत्रो के साथ होती है | यह पूजा महर्षि एवं माँ के मंदिर दोनो ही स्थानों पर होती है | सायं को इस पूजा की पुनरावृत्ति होती है जो लगभग एक घंटे का होता है |

श्री चक्रपूजा (आश्रम की दिनचर्या देरवें) के दिन पूजा अधिक विस्तार से होती है | इसमें  ६४ प्रकार से आराधना की जाती है जिसमें ब्रहमाण्ड की माँ की मंत्र-स्तुति तथा विशेष रूप से मीठे पके चावल एवं तले हुए पकवान शामिल है, के साथ की जाती है| पूजा बहुरंगी तथा अत्यन्त प्रभावशाली होती है | नवरात्रि या दशहरा त्यौहार पर माँ के सम्मान में दस दिन का उत्सव लक्षार्चणा के साथ होता है | इसमें माँ के १००८ नाम के साथ पुष्प या कुमकुम चढ़ाया जाता है | इन दिनो देवी योगाम्बिका का विविध श्रृंगार जेवरों के साथ किया जाता है | प्रत्येक दिन देवी का अलग श्रृंगार होता है | यह भी एक बहुंरगी त्यौहार है | इस संबंध में एक महत्वपूर्ण घटना का उल्लेख करना आवश्यक है| माँ के मंदिर में जब योगाम्बिका की मूर्ति स्थापित हो रही थी तो मूर्ति के पिघले धातु पर महर्षि ने सोने का एक छोटा टुकड़ा फेंका, आश्चर्य जनक रूप से वह मूर्ति के ललाट पर चिपक गया जो मस्तक पर पावन तिलक बन गया|

महर्षि जयन्ती या जन्म दिन, हर वर्ष मार्गशीष के सौर्य महीने में जब चन्द्रमा पुनर्वसु राशि में होता है, के दिन मनाया जाता है | आराधना या महर्षि का समाधि दिवस हर वर्ष अप्रैल-मई में सौर्य महीने के चैत्र में तेरहवें दिन मनाया जाता है | दोनो ही आवसरों पर पूजा में भाग लेने महर्षि का प्रसाद ग्रहण करने हेतु भक्तों की भीड़ एकत्रित होती है | महर्षि के छोटे भाई श्री निरन्जनानंद स्वामी ने  जिस दिन समाधि ली थी, भी हर वर्ष छोटे स्तर पर मनाया जाता है| शंकराचार्य से जुड़ी तिथियाँ एवं अन्य प्रचीन गुरुओं के दिन भी विशेष पूजा होती है | प्रति वर्ष श्री विद्या हवन के रूप में विस्तृत यज्ञ होता है |

आश्रम की यह परम्परा नहीं है कि यात्रियों या आवासियों के लिए कठिन आध्यात्मिक कक्षाएँ आयोजित करे फिर भी महर्षि के उपदेशों का पाठ नित्य समाधि कक्ष में होता है । महर्षि की रचनाओं का पाठ पुरुष स्त्रियों की उपस्थित में सायंकाल होता है | विशिष्ट अवसरों पर समर्थ व्यक्तियों के व्याख्यान होते हैं |

महर्षि के उपदेश, उनकी रचनाओं एवं उनके भक्तों द्वारा लिखित पुस्तकों में है | ये रचनाएँ पुस्तक रूप में अंग्रेजी  तथा अधिकांश भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हैं । आश्रम की कई पुस्तकें विदेशी भाषाओं में अनुवादित एवं प्रकाशित हुई हैं | प्रकाशित इन पुस्तकों को आडियो एवं वीडियो कैसेट्स  के साथ बुक स्टाल से प्राप्त किया जा सकता है | ये सभी उचित मूल्य पर उपलब्ध है |

आश्रम त्रैमासिक पत्रिका ‘माउन्टन पाथ’ १९६४ से प्रकाश्ति कर रहा है जो सभी धर्मों के सर्वकालीन पारम्परिक ज्ञान का प्रसार करता जो उनके संतो एवं सिध्दों द्वारा अनुभूतिजन्य रहे हैं | यह नये युग के अनुरूप मुमुक्षुओं का पथ प्रदर्शन करता है |

बुक स्टाल:

पिछली सदी के प्रथम वर्ष भगवान के उपदेश स्लेट या जमीन के रेत या कागज के कुछ टुकडों पर लिखकर संचारित हुए | दिवा योजनानुसार, जिसे सुरक्षित रखना आवश्यक था, वह अब बाद के लिए सुरक्षित है तथा उनके भक्तों के लिए बुक स्टाल पर उपलब्ध है|

आरंभ में कुछ भक्त आगे आये तथा उन्हें प्राकाशित किया| भगवान पूरी सतर्कता पूर्वक स्वयं प्रुफ ठीक करते थे तथा परामर्श देते कि पुस्तक की कीमत न्यूनतय हो ताकि अधिक व्यक्ति उन्हें वहन कर सकें |

कम्प्युटर में डाउनलोड करने के लिए श्री रमणाश्रम ने अनेक पुस्तकें एवं तस्वीरें उपलब्ध  की हैं|

वर्तमान में विभिन्न भाषाओं (२०) में ६०० से भी अधिक पुस्तकें है जिनमें आध्यात्मिक ज्ञान का सार सन्निहित है | डाउनलोड के लिए अंग्रेंजी एवं तमिल पुस्तकों की विषय-सूची उपल्ब्ध है|

बुक स्टाल, पुस्तकों के साथ-साथ आडियो, वीडियो, फोटो एवं मल्टी मिडिया का भी स्रोत है |

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श्री रमणाश्रमम

पो. तिरुवण्णामलै

तमिलनाडू – ६०६६०३

दक्षिण भारत

 

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अरुणाचल आश्रम वेब साइट: www.arunachala.org

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